पंछी की कलकलाट हुई, हौले से नींद से आँखें खुली। आयी फिर सुहानी सुबह सजधज भरकर लाली। पंछी की कलकलाट हुई, हौले से नींद से आँखें खुली। आयी फिर सुहानी सुबह सजधज भरकर...
साहित्य समाज का दर्पण है, इतिहास अतीत का उसमें अर्पण हैI साहित्य समाज का दर्पण है, इतिहास अतीत का उसमें अर्पण हैI
गौतम से राम तक गौतम से राम तक
शहंशाह से गिद्ध तक शहंशाह से गिद्ध तक
खुद भूखा रहकर हमको अन्न दिलाता है उसके पसीने से ये मिट्टी धान खिलाती है ! खुद भूखा रहकर हमको अन्न दिलाता है उसके पसीने से ये मिट्टी धान खिलाती है !
हमको बेटी की वो दर्द भरी चीख सुनाई देती है! हमको बेटी की वो दर्द भरी चीख सुनाई देती है!